शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

गुप्तगायत्री

एकम् सत्य विप्रा बहुधा वदन्ति Wednesday, 29 March 2017 गुप्तगायत्री Jai Mahakaal ॐ शिव गुरु गोरखनाथाय नमः Agar kuch bhi Samaj m Nahi Aaye to comments m puch sakte hai ya apne gurudev se uske bare m baat kar sakte hai Jai Mahakaal ॐ शिव गुरु गोरखनाथाय नमः Agar kuch bhi Samaj m Nahi Aaye to comments m puch sakte hai ya apne gurudev se uske bare m baat kar sakte hai  ▼ Sunday, 5 July 2015 गायत्री की गुप्त शक्तियाँ गायत्री की गुप्त शक्तियाँ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। गायत्री सनातन एवं अनादि मंत्र है। पुराणों में कहा गया है कि ‘‘सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था, इसी गायत्री की साधना करके उन्हें सृष्टि निर्माण की शक्ति प्राप्त हुई। गायत्री के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप ही ब्रह्माजी ने चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया। गायत्री को वेदमाता कहते हैं। चारों वेद, गायत्री की व्याख्या मात्र हैं।’’ गायत्री को जानने वाला वेदों को जानने का लाभ प्राप्त करता है। गायत्री के 24 अक्षर 24 अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं के प्रतीक हैं। वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति, उपनिषद् आदि में जो शिक्षाएँ मनुष्य जाति को दी गई हैं, उन सबका सार इन 24 अक्षरों में मौजूद है। इन्हें अपनाकर मनुष्य प्राणी व्यक्तिगत तथा सामाजिक सुख-शान्ति को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकता है। गायत्री गीता, गंगा और गौ यह भारतीय संस्कृति की चार आधारशिलायें हैं, इन सबमें गायत्री का स्थान सर्व प्रथम है। जिसने गायत्री के छिपे हुए रहस्यों को जान लिया, उसके लिए और कुछ जानना शेष नहीं रहता। समस्त धर्म ग्रन्थों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कण्ठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा बताने वाला साहित्य भरा पड़ा है। उसका संग्रह किया जाय, तो एक बड़ा ग्रन्थ ही बन सकता है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूँ। गायत्री उपासना के साथ-साथ अन्य कोई उपासना करते रहने में कोई हानि नहीं। सच तो यह है कि अन्य किसी भी मन्त्र का जाप करने में या देवता की उपासना में तभी सफलता मिलती है, जब पहले गायत्री द्वारा उस मंत्र या देवता को जाग्रत कर लिया जाए। कहा भी है- यस्य कस्यापि मन्त्रस्य पुरश्चरणमारभेत्। व्याहृतित्रयसंयुक्तां गायत्रीं चायुतं जपेत्।। नृसिंहार्कवराहाणां तान्त्रिक वैदिकं तथा। बिना जप्त्वातु गायत्रीं तत्सर्वं निष्फल भवेत।। चाहे किसी मंत्र का साधन किया जाए। उस मंत्र को व्याहृति समत गायत्री सहित जपना चाहिए। चाहे नृसिंह, सूर्य, वराह आदि किसी की उपासना हो या वैदिक एवं तान्त्रिक प्रयोग किया जाए, बिना गायत्री को आगे लिए वे सब निष्फल होते हैं। इसलिए गायत्री उपासना प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक है। गायत्री सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मन्त्र है। जो कार्य संसार में किसी अन्य मन्त्र से हो सकता है, गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी का अनिष्ट नहीं होता, इससे सरल, स्वल्प, श्रम साध्य और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है। समस्त धर्म ग्रन्थों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई है। अथवर्वेद में गायत्री को आयु, विद्या, सन्तान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। विश्वामित्र ऋषि का कथन है-‘‘गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान भी नहीं है।’’ गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में अनेक ज्ञान-विज्ञान छिपे हुए हैं। अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र, सोना आदि बहुमूल्य धातुओं का बनाना, अमूल्य औषधियाँ, रसायनें, दिव्य यन्त्र अनेक ऋद्धि-सिद्धियाँ, शाप, वरदान के प्रयोग, नाना प्रयोजनों के लिए नाना प्रकार के उपचार, परोक्ष विद्या, अन्तर्दृष्टि, प्राण विद्या, वेधक, प्रक्रिया, शूल शाल्य, वाममार्गी तंत्र विद्या, कुण्डलिनी, चक्र, दश, महाविद्या, महामातृका, जीवन, निर्मोक्ष, रूपान्तरण, अक्षात, सेवन, अदृश्य, दर्शन, शब्द परव्यूह, सूक्ष्म संभाषण आदि अनेक लुप्त प्राय महान् विद्याओं के रहस्य बीज और संकेत गायत्री में मौजूद हैं। इन विद्याओं के कारण एक समय हम जगद्गुरु, चक्रवर्ती शासक और स्वर्ग सम्पदाओं के स्वामी बने हुए थे, आज इन विद्याओं को भूलकर हम सब प्रकार दीन- हीन बने हुए हैं। गायत्री में सन्निहित उन विद्याओं का यदि फिर प्रकटीकरण हो जाए, तो हम अपना प्राचीन गौरव प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री साधना द्वारा आत्मा पर जमे हुए मल विक्षेप हट जाते हैं, तो आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है और अनेक ऋद्धि-सिद्धियाँ परिलक्षित होने लगती हैं। दर्पण माँज पर उसका मैल छूट जाता है, उसी प्रकार गायत्री साधना से आत्मा निर्मल एवं प्रकाशवान् होकर ईश्वरीय शक्तियों, गुणों, सामर्थ्यों एवं सिद्धियों से परिपूर्ण बन जाती है। आत्मा के कल्याण की अनेक साधनायें हैं। सभी का अपना-अपना महत्त्व है और उनके परिणाम भी अलग-अलग हैं। ‘स्वाध्याय’ से सन्मार्ग की जानकारी होती है। ‘सत्संग’ से स्वभाव और संस्कार बनते हैं। कथा सुनने से सद्भावनाएँ जाग्रत होती हैं। ‘तीर्थयात्रा’ से भावांकुर पुष्ट होते हैं। ‘कीर्तन’ से तन्मयता का अभ्यास होता है। दान-पुण्य से सुख-सौभाग्यों की वृद्धि होती है। ‘पूजा-अर्चा’ से आस्तिकता बढ़ती है। इस प्रकार यह सभी साधन ऋषियों ने बहुत सोच-समझकर प्रचलित किये हैं। पर ‘तप’ का महत्त्व इन सबसे अधिक है। तप की अग्नि में पड़कर ही आत्मा के मल विक्षेप और पाप-ताप जलते हैं। जप के द्वारा ही आत्मा में वह प्रचण्ड बल पैदा होता है, जिसके द्वारा सांसारिक तथा आत्मिक जीवन की समस्याएँ हल होती हैं। तप की सामर्थ्य से ही नाना प्रकार की सूक्ष्म शक्तियाँ और दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए तप साधन को सबसे शक्तिशाली माना गया है। तप के बिना आत्मा में अन्य किसी भी साधन से तेज प्रकाश बल एवं पराक्रम उत्पन्न नहीं होता। गायत्री उपासना प्रत्यक्ष तपश्चर्या है, इससे तुरन्त आत्मबल बढ़ता है। गायत्री साधना एक बहुमूल्य दिव्य सम्पक्ति है। इस सम्पत्ति को इकट्ठी करके साधक उसके बदले में सांसारिक सुख एवं आत्मिक आनन्द भली प्रकार प्राप्त कर सकता है। गायत्री मंत्र से आत्मिक कायाकल्प हो जाता है। इस महामंत्र की उपासना आरम्भ करते ही साधक को ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे आन्तरिक क्षेत्र में एक नई हलचल एवं रद्दोबदल आरम्भ हो गई है। सतोगुणी तत्त्वों की अभिवृद्धि होने से दुर्गुण, कुविचार, दुःस्वभाव एवं दुर्भाव घटने आरम्भ हो जाते हैं और संयम, नम्रता, पवित्रता, उत्साह, स्फूर्ति, श्रमशीलता, मधुरता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, उदारता, प्रेम, सन्तोष, शान्ति, सेवाभाव, आत्मीयता आदि सद्गुणों की मात्रा दिन-दिन बड़ी तेजी से बढ़ती जाती है। फलस्वरूप लोग उसके स्वभाव एवं आचरण से सन्तुष्ट होकर बदले में प्रशंसा, कृतज्ञता, श्रद्धा एवं सम्मान के भाव रखते हैं और समय-समय पर उसकी अनेक प्रकार से सहायता करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त सद्गुण स्वयं इतने मधुर होते हैं, कि जिस हृदय में इनका निवास होगा, वहाँ आत्म सन्तोष की परम शान्तिदायक शीतल निर्झरिणी सदा बहती है। ऐसे लोग सदा स्वर्गीय सुख आस्वादन करते हैं। गायत्री साधना के साधक के मनःक्षेत्र में असाधारण परिवर्तन हो जाता है। विवेक, दूरदर्शिता, तत्त्वज्ञान और ऋतम्भरा बुद्धि की अभिवृद्धि हो जाने के कारण अनेक अज्ञान जन्य दुःखों का निवारण हो जाता है। प्रारब्धवश अनिवार्य कर्मफल के कारण कष्टसाध्य परिस्थितियाँ हर एक के जीवन में आती रहती हैं, हानि, शोक, वियोग, आपत्ति, रोग, आक्रमण, विरोध, आघात आदि की विभिन्न परिस्थितियों से जहाँ साधारण मनोभूमि के लोग मृत्यु तुल्य कष्ट पाते हैं। वहाँ आत्मबल सम्पन्न गायत्री साधक अपने विवेक, ज्ञान, वैराग्य, साहस, आशा, धैर्य, सन्तोष, संयम और ईश्वर विश्वास के आधार पर इन कठिनाइयों को हँसते-हँसते आसानी से काट लेता है। बुरी अथवा असाधारण परिस्थितियों में भी वह अपने आनन्द का मार्ग ढूँढ़ निकालता है और मस्ती, प्रसन्नता एवं निराकुलता का जीवन बिताता है। प्राचीन काल में ऋषियों ने बड़ी-बड़ी तपस्यायें और योग्य साधनायें करके अणिमा, महिमा आदि चमत्कारी ऋद्धि -सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। उनके शाप और वरदान सफल होते थे तथा वे कितने ही अद्भुत एवं चमत्कारी सामर्थ्यों से भरे पूरे थे, इनका वर्णन इतिहास, पुराणों में भरा पड़ा है। वह तपस्यायें और योग -साधनायें गायत्री के आधार पर ही होती थीं। गायत्री महाविद्या से ही 84 प्रकार की महान् योग साधनाओं का उद्भव हुआ है। गायत्री के 24 अक्षरों का गुंथन ऐसा विचित्र एवं रहस्यमय है कि उनके उच्चारण मात्र से जिह्मा, कण्ठ, तालु एवं मूर्धा में अवस्थित नाड़ी तंतुओं का एक अद्भुत क्रम में संचालन होता है। टाइप राइटर की कुन्जियों पर उँगली रखते ही जैसे कागज पर अक्षर की चोट पड़ती है, वैसे ही मुख में मंत्र का उच्चारण होने से शरीर में विविध स्थानों पर छिपे हुए शक्ति चक्रों पर उसकी चोट पड़ती है और उनका सूक्ष्म जागरण होता है। इस संचालन से शरीर के विविझ स्थानों में छिपे हुए षट्चक्र भ्रमर, कमल, ग्रन्थि संस्थान एवं शक्ति चक्र झंकृत होने लगते हैं। मुख की नाड़ियों द्वारा गायत्री के शब्दों के उच्चारण का आघात उन चक्रों तक पहुँचता है। जैसे सितार के तारों पर क्रमबद्ध उँगलियों फिराने से एक स्वर लहरी एवं ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है, वैसी ही गायत्री चौबीस अक्षरों का उच्चारण उन चौबीस चक्रों में झंकारमय गुंजार उत्पन्न करता है, जिससे वे स्वयमेव जाग्रत् होकर अधिक को योग शक्तियों से सम्पन्न बनाते हैं। इस प्रकार गायत्री के जप से अनायास ही एक महत्त्वपूर्ण योग साधना होने लगती है और उन गुप्त शक्ति केन्द्रों के जागरण से आश्चर्यजनक लाभ मिलने लगता है। गायत्री भगवान् का नारी रूप है। भगवान् की माता के रूप में उपासना करने से दर्पण के प्रतिबिम्ब एवं कुएँ की आवाज की तरह वे भी हमारे लिए उसी प्रकार प्रत्युत्तर देते हैं, संसार में सबसे अधिक स्नेहमूर्ति माता होती है। भगवान् की माता के रूप में उपासना करने से प्रत्युत्तर में उनका अपार वात्सल्य प्राप्त होता है। मातृ पूजा से नारी जाति के प्रति पवित्रता, सदाचार एवं आदर के भाव बढ़ते हैं, जिनकी कि मानव जाति को आज अत्यधिक आवश्यकता है। गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। गायत्री मन्त्र से निकली तरंगे ब्रह्माण्ड में जाकर बहुत से दिव्य और शक्तिशाली अणुओं और तत्वों को आकर्षित करके जोड़ देती हैं और फिर पुनः अपने उदगम पे लौट आती है जिससे मानव शरीर दिव्यता और परलौकिक सुख से भर जाता है । गायत्री महामंत्र- ॐ भूर्भुव स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ हिन्दी में भावार्थ - उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे । भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को नित्य-नियमित गायत्री उपासना करनी चाहिए । विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विभिन्न विपत्तियों, आसन्न विभीषिकाओं से उसकी रक्षा करती है । गायत्री मंत्र पढ़ने के लिये कुछ विधियों का पालन करना अनिवार्य है। बताया जाता है कि गायत्री मंत्र को पढ़ने से पहले आंखें बंद कर लेनी चाहिये और गांयत्री मंत्र के हर शब्‍द को विचारना चाहिये। यह मंत्र दिन में किसी समय भी पढ़ा जा सकता है लेकिन अगर आप इसे दिन की शुरुआत में यानी की सुबह-सुबह पढे़ तो इससे आपका पूरा दिन अच्‍छा जाएगा। गायत्री मंत्र को जो भी दिन में तीन बार पढ़ता है, उसके ऊपर भगवान की कृपा अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य, धन, सौदर्य और शक्‍ति के रूप में बरसती है। सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है । मौन-मानसिक जप चौबीस घण्टे किया जा सकता है । माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें । गायत्री मंत्र पढ़ने का एक और फायदा है, वह यह कि आपकी टलती हुई शादी हो जाएगी। भारत में अगर किसी लड़की की शादी समय पर न हो रही हो तो लोग उसे बुरा भला कहना शुरु कर देते हैं। तो अगर आप गायत्री मंत्र जपना शुरु कर दें तो आपके बिगडे़ हुए सितारे अपनी सही जगह पर आ जाएंगे और आपकी शादी सही समय पर हो जाएगी। गायत्री मंत्र का जप करने से होने लगता है पूर्वाभास गायत्री मंत्र के जप से बहुत जल्दी शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। इसके नियमित जप से पूर्वाभास हो सकता है। गायत्री मंत्र ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।। गायत्री मंत्र का सरल अर्थ सृष्टि कर्ता यानी सृष्टी की रचना करने वाले प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं। परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सही मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें। इस मंत्र के जप के लाभ यदि कोई व्यक्ति इस मंत्र का जप नियमित रूप से करता है तो उसे उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रुचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है। मंत्र विद्या का प्रयोग मंत्र विद्या का प्रयोग भगवान की भक्ति, ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है। साथ ही, सांसारिक एवं भौतिक सुख-सुविधाओं, धन प्राप्त करने की इच्छा के लिए भी मंत्रों का जप किया जा सकता है। मंत्र जप के लिए समय शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में इसके जप की विधि विस्तृत रूप से दी गई हैं। इस मंत्र को जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है। गायत्री मंत्र की खास बातें और चमत्कारी उपाय मंत्र जप ऐसा उपाय है जिससे किसी भी प्रकार की समस्या को दूर किया जा सकता है। मंत्रों की शक्ति से सभी भलीभांति परिचित हैं। मनचाही वस्तु प्राप्ति और इच्छा पूर्ति के लिए मंत्र जप से अधिक अच्छा साधन कोई और नहीं है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र सबसे दिव्य और चमत्कारी है। इस जप से बहुत जल्द परिणाम प्राप्त हो जाते हैं। गायत्री मंत्र ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।। गायत्री मंत्र का अर्थ: सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते है, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें। इस मंत्र को जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है। शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए। इस मंत्र के जप से हमें यह दस लाभ प्राप्त होते हैं उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है। विद्यार्थीयों के लिए गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है। दरिद्रता के नाश के लिए यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे “श्रीं” सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है। संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर “यौं” बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे “क्लीं” बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है। विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए “ह्रीं” बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं। यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ “ऐं ह्रीं क्लीं” का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं। जो भी व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह यह उपाय करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। उपाय इस प्रकार है पीपल, शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में कच्चा दूध भरकर रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जाप करें। इसके बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप करते हुए अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है। किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही, घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग एवं पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए। गायत्री मंत्रों के साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है। नारियल के बुरे मे यदि शहद का प्रयोग किया जाए तो सौभाग्य में वृद्धि होती हैं। गायत्री मंत्र (मूल संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद सहित) गायत्री मंत्र हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है, जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद ३.६२.१० के मेल से बना है। ऐसा माना जाता है कि इसके उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। ॐ भूर्भुव स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात शाब्दिक अर्थ ॐ : सर्वरक्षक परमात्मा भू: : प्राणों से प्यारा भुव: : दुख विनाशक स्व: : सुखस्वरूप है तत् : उस सवितु: : उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक वरेण्य : वरने योग्य भुर्ग: : शुद्ध विज्ञान स्वरूप का देवस्य : देव के धीमहि : हम ध्यान करें धियो : बुद्धियों को य: : जो न: : हमारी प्रचोदयात : शुभ कार्यों में प्रेरित करें भावार्थ उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे, दु:खनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें तथा वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें। गायत्री मंत्र को जगत की आत्मा माने गए साक्षात देवता सूर्य की उपासना के लिए सबसे सरल और फलदायी मंत्र माना गया है. यह मंत्र निरोगी जीवन के साथ-साथ यश, प्रसिद्धि, धन व ऐश्वर्य देने वाली होती है। लेकिन इस मंत्र के साथ कई युक्तियां भी जुड़ी है. अगर आपको गायत्री मंत्र का अधिक लाभ चाहिए तो इसके लिए गायत्री मंत्र की साधना विधि विधान और मन, वचन, कर्म की पवित्रता के साथ जरूरी माना गया है। वेदमाता मां गायत्री की उपासना 24 देवशक्तियों की भक्ति का फल व कृपा देने वाली भी मानी गई है। इससे सांसारिक जीवन में सुख, सफलता व शांति की चाहत पूरी होती है। खासतौर पर हर सुबह सूर्योदय या ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री मंत्र का जप ऐसी ही कामनाओं को पूरा करने में बहुत शुभ व असरदार माना गया है। आप भी गायत्री मंत्र की शक्ति और शुभ प्रभाव से सफलता चाहते हैं तो बताई जा रही गायत्री मंत्र जप से जुड़ी जरूरी बातों का ध्यान जरूर रखें- - गायत्री मंत्र जप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए। - गायत्री मंत्र जप के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ होता है। किंतु यह शाम को भी किए जा सकते हैं। - गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें। किंतु सेहत ठीक न होने या अन्य किसी वजह से स्नान करना संभव न हो तो किसी गीले वस्त्रों से तन पोंछ लें। - साफ और सूती वस्त्र पहनें। - कुश या चटाई का आसन बिछाएं। पशु की खाल का आसन निषेध है। - तुलसी या चन्दन की माला का उपयोग करें। - ब्रह्ममूहुर्त में यानी सुबह होने के लगभग 2 घंटे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र जप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर जप पूरे करें। शाम को पश्चिम दिशा में मुख रखें। - इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है। - शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जप में बाधा आने पर हाथ-पैर धोकर फिर से जप करें। बाकी मंत्र जप की संख्या को थोड़ी-थोड़ी पूरी करें। साथ ही एक से अधिक माला कर जप बाधा दोष का शमन करें। - गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। किंतु जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के असर से ऐसा व्यक्ति भी शुद्ध और सद्गुणी बन जाता है। विशेष नोट : प्राथमिक स्तर से लेकर दसवीं तक की मेरी पढ़ाई-लिखाई समर्थ शिक्षा समिति द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर एवं सरस्वती बाल मंदिर की नई दिल्ली स्थित हरि नगर शाखा में हुई... शिशु मंदिर के नाम में किसी का नाम जुड़ा था या नहीं, याद नहीं, परंतु बाल मंदिर की हमारी शाखा का पूरा नाम महाशय चूनीलाल सरस्वती बाल मन्दिर था... हमारे विद्यालय की प्रार्थना सभा में प्रात:कालीन मंत्र, दो सरस्वती वन्दना (एक हिन्दी में तथा एक संस्कृत में), श्रीमद्भगवद्गीता के 10 श्लोकों का पाठ किया जाता था, जिनमें से कुछ वर्ष के उपरांत दो श्लोक बदल दिए गए थे (मैंने सभी 12 श्लोक यहां दिए हैं, और इंटरनेट पर होने का लाभ उठाते हुए सभी के अर्थ भी लिख दिए हैं)... हमें विद्यालय से ही प्रार्थना की एक पुस्तिका (उसका नाम जहां तक याद है, 'अमृतवाणी' था) मिलती थी, जिसमें सभा के दौरान पढ़ी जाने वाली सभी प्रार्थनाएं प्रकाशित जाती थीं... 'अमृतवाणी' तो मुझे नहीं मिल पाई, परंतु गर्वान्वित हूं कि सिर्फ स्मृति के सहारे आज 21 वर्ष बाद भी लगभग सभी प्रार्थनाएं तलाश कर सका, या न मिलने की स्थिति में टाइप कर सका... वैसे, विद्यालय की प्रार्थना सभा में कुछ वर्षों तक 'ऐक्य मंत्र' तथा 'गायत्री मंत्र' का भी पाठ हुआ... 'ऐक्य मंत्र' कतई याद नहीं है, परंतु 'गायत्री मंत्र' यहां इस ब्लॉग पर भावार्थ सहित आपको मिल जाएगा... और हां, प्रार्थना सभा के अंत में सोमवार से शुक्रवार तक राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्...' तथा शनिवार को राष्ट्रीय गान 'जन गण मन...' का पाठ भी होता था, परंतु उन्हें यहां टाइप नहीं कर रहा हूं, क्योंकि वे बहुत-सी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं... विद्यालय में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा के अतिरिक्त भोजनावकाश होने पर भोजन मंत्र, तथा विद्यालय की छुट्टी हो जाने से तुरंत पहले सायंकालीन प्रार्थना का पाठ भी अनिवार्य था, सो, वे भी आपके सामने हैं... Pukhraj Mewara at Sunday, July 05, 2015 Share  No comments: Post a Comment ‹ › Home View web version Contributors Pukhraj Mewara RK Singh Rama Kant Sngh Contributors Pukhraj Mewara RK Singh Rama Kant Sngh Powered by Blogger.  Vedant Shukla at 18:05 Share ‹ › Home View web version Powered by Blogger.

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