शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

ॐकार मंत्र

ॐकार मंत्र का प्रभाव By: Ashish Gaba   ओंकार मंत्र की महिमा  एक सूरदास डॉ, भगवानदास के दवाखाने में गया लाठी टेकता-टेकता | ये भगवानदास का अस्पताल है ? बोले – “हाँ महाराज, मैं धनराज पंडित, प्रज्ञाचक्षु |” तुम्हारे यहाँ भोजन मिल  जायेगा, भिक्षा मिल जायेगी ?   बोले – “महाराज, रुको मैं पूछ लेता हूँ | “ आगे अस्पताल थी पीछे घर था मनु गर्ग का । आगे मंदिर है और पीछे घर है | घरवालों ने कहा कि अभी नहा-धोकर रसोईघर में आ रहे हैं । एक घंटे के बाद बाबा को बोलना आ जाये भोजन करा देंगे | “बाबा ! एक घंटे के बाद आप पधार लों- भोजन तैयार हो जायेगा |” बोले - मैं अंधा आदमी हूँ | किधर लकड़ी टेकता जाऊँगा तुम्हारे अस्पताल में जगह हो, तो थोडा कोने में बैठ जाऊं..  “ हाँ हाँ, महाराज बैठिये |” डॉक्टर ने अपने मरीजों से लेना देना था किया |  “महाराज ! ॐकार मंत्र की बड़ी भारी महिमा है और सभी देवताओं के आगे ॐ मंत्र आगे लगाते | ॐ नम शिवाय, ॐ भूभुर्व: स्व:, ॐ गं गणपतेय नम:, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय एक ॐकार अल्लाहु अकबर वही ॐकार है | ये ॐ का इतना बड़ा प्रभाव है |”    “ आप कुछ ... और बोले.. “ वो महाराज धडधड बोलते गये | “महाराज कल भी आना, मुझे बहुत लाभ मिला है | मेरा जीवन धन्य हो गया है । ॐकार की महिमा जाननेवाले धनराज पंडित  ब्रह्मदेव | कल आना, कल आना रोज बुलाते गये, एक दिन भगवानदास ने पैर पकड के कहा “आज्ञा दे दो | अंबाप्रसाद शास्त्री है वो लिखने में कुशल है, सुप्रसिद्ध है | आपका ये अमृत लोगों तक भी मिले “ बोले -हाँ बुला लो | महाराज रोज जाते गये और ॐकार मंत्र की व्याख्या करते, नये श्लोक बोलते जाय आखिर पूछना पड़ा कि इतने सारे श्लोक आप सूरदास है ? ये किस आधार पर बोलते है | बोले गार्गायन ऋषी  ने भगवान नारायण ऋषि- “ ऋषि माना खोजनेवाला ये ॐकार मंत्र भगवान नारायण ने बनाया नहीं है | बनाया उसे जाता है जो पहले नहीं था और खोजा उसे जाता है जो पहले था | तो भगवान नारायण ने तो ब्रह्मा को बनाया, ब्रह्माजी ने दुनियाँ बनाई लेकिन वो ॐकार मंत्र भगवान नारायण ने नहीं बनाया उन्होंने खोजा है और गार्गायन ऋषि ने उसकी खोज की है, उसी के आधारपर मैं बोलता हूँ | अंबाप्रसाद शास्त्री लिखते-लिखते २२ हजार श्लोक लिख डाले ॐकार मंत्र की महिमा के | थिओंसोफिकल सोसायटीवालों ने अँग्रेजी में उसका अनुवाद किया, मैं थिओंसोफिकल सोसायटी में प्रवचन करके भी आया हूँ | २२ हजार श्लोक तो उन्होंने खोज लिए वास्तव मे उससे भी कहीं ज्यादा है । कोई वर्णन नहीं कर सकता | जैसे भगवान की महिमा का अंत नहीं है वैसे ॐकार मंत्र के प्रभाव का अंत नहीं | और ॐकार का उद्गमस्थान है मैं, मैं -अहं वाला मैं नहीं, शुद्ध “ मैं” उसमे ठहरे हुये महापुरुष की भी महिमा का कोई अंत नहीं | अभी जे मार्गन डॉक्टर वैज्ञानिक कहता है कि – Indian Omkar Mantra is very powerful  without any medicine any Injection, Capsule, Tablet operation nothing else ok , nothing else. Only Omkar therapy very powerful Liver problem solve, Stomach problem solve, mentally problem solve.  मैं जे मार्गन को शाबाश दूँगा लेकिन ये कोई बड़ी खोज नहीं है | ऐसी खोज तो हमारे ऋषियों के बच्चों ने भी कर रखी है, संतों के सेवकों ने कर रखी है | २२ हजार है, तुम्हारी तो एक श्लोक की खोज हो गई | ॐकार मंत्र से पेट, लीवर, दिमाग की बीमारी मिटतीं है इतना ही है क्या ॐकार मंत्र का प्रभाव । लेकिन २२ हजार श्लोक है, सात जन्मों की कंगालियत हो ‘ॐ.. ॐ.. ‘ १२० माला जप करें, खीर बनायें सूर्य को भोग लगाये वही खायें सात दिन करें | सात जन्मों की तो कंगालियत तो चली जायेगी, सात पीढ़ियों तक गरीबी नहीं आएगी ऐसा ॐकार मंत्र का प्रभाव है | ॐकार मंत्र जल्दी जल्दी जपे तो पापनाशिनी उर्जा पैदा हो जाती है | ॐकार मंत्र दीर्घ जपे तो कार्य साफल्य उर्जा पैदा होती है | ॐकार मंत्र प्लुत जपे तो परमात्मा में विश्रांति मिलती है | और ॐकार मंत्र जप करता है मांस, मदिरा को नहीं छूता उसको नरक नहीं हो सकता, यमराज उसका सत्कार करेंगा |  मेरी नानी मर गई थी, कंधे पर उठाके ले गये शमशान तक | और शमशान में हिली, थोड़ी जल्दी जल्दी रस्सियाँ काटी और मेरी नानी पैदल आयी घर, ३९ साल की । पूछा गया कि तुमको क्या अनुभव हुआ | मरता है आदमी तो चार प्रकार की मुसीबत होती है | अक्सिडेंट, शरीर की पीड़ा, बीमारी, कुछ दूसरा कोई चीज आसक्ति है तो कोई उसके याद में छटपटाता है, कोई दूसरा काम किया है मरते समय मैंने ये ऐसा-ऐसा कर लिया | एलिजाबेथ मरते समय को खूब घबराती थी | कोई मुझे जिन्दा रखे दो घंटे तक मैं सारी मलकीयत दे दूँगी | सिंकदर के डॉक्टरों ने कहाँ था अब तुम दो कोस भी नहीं चल सकते बोले नहीं मुझे १०० कोस चलना है | मेरे वतन पहुंचना है रास्ते में मर गया | तो नानी से पूछा कि तुमको कोई तकलीफ नहीं, बोले नहीं, सुन्न सा शरीर हो गया फिर बाद में मैंने देखा तो ये नरक है | पापियों को दंडित किया जाता है तो मैंने बोला मेरेको ईधर क्यूँ लाये हो ? ये नरक तो पापियों का है मैंने तो ॐकार का जप किया है और गुरु का दर्शन किया है | मांस नहीं खाया है, दारु नही पीया है मुझे नरक में क्यूँ लायें ? आपको कभी नरक में ले जाये तो उधर डांट चढ़ाना हमने ॐकार का जप किया है, सत्संग सुना है, दारु नहीं पीया है, मास नहीं खाया है हमें नरक नहीं हो सकता | बोले- “बाई तुम्हारा नाम हेमीबाई पहुमल है ना ?” मैं बोली – “नहीं पहुमल, फहुमल नहीं है ? हमारा पति का नाम दूसरा है |” बोले “क्या नाम है |”  बोली - ‘प’ पे है लेकिन हम नाम नहीं लेते हमारी मर्यादा है, धर्म है हमारा |”  “परिहज है, ....पुरुषोत्तम दास...., पंजुमल...., प्रीतमदास.....????   बोली –“ नहीं |” वो बोले “बाई आखिर क्या नाम है ?”  मै बोली - ‘प’ पे है आप बोलते जाओ ना ... बोलते – बोलते –“हेमीबाई प्रेमकुमार” तो मै बोली “कुमार हटाके चंद लगा दो |” बोले -हेमीबाई प्रेमचंद ? मैं बोली - हाँ ! यमराज ने यमदूतों को डांटा कि पहले पुष्करणा पापी को लाना था तो तुम पुष्करणा पुण्यात्मा को ले आये | हेमीबाई पहुमल को लाना था तो हेमीबाई प्रेमचंद को लाये | जाओ वापस छोड़ को आओं | तो मेरी नानी जिंदी हो गई ६९ साल जी |  तुम्हारे को कोई ले जाये, नरक-बरक देखो तो चिल्लाना कि हमने ॐ का जप किया है और सत्संग सुना है | हमें नरक नहीं हो सकता है | दारू नहीं पीते, मास नहीं खाते..... हो गया और ॐकार मंत्र जिसके जीवन में नहीं है वो मरकर इस ब्रह्मांड में भटकेगा, कोई भी योनी में जाएगा तो प्रेत होके भटकेगा | लेकिन ॐकार मंत्र जपा है तो इस ब्रह्मांड में भटकने का कोई सवाल ही नहीं | अनंत ब्रह्मांड की उर्जा उनके साथ एक हो जाती है | ये एक सृष्टि नहीं एक – एक सृष्टि का एक–एक भगवान होता है | कई सृष्टियाँ और कई भगवान, एक सूरज नहीं है ४०० करोड़ सूरज है | ये सबसे छोटा सूरज है लेकिन करोड़ों मील पृथ्वी से दूर है और पृथ्वी से १३ लाख गुना बड़ा है लेकिन सबसे छोटा है | वो समय आता है की 11 सूरज एक साथ ऊपर जो सूरज है हमको दीखते नहीं वो जब नीचे उतरते है इनके बराबरी में तो आग-आग हो जाती है | ११ सूरज आग-आग सब सफाया हो जाता है | फिर भी आत्मा आच्युत है जो का त्यों रहता है | वही केशव है, वही राम है, वही नारायण है, वही अभी मैं... मैं हूँ , मैं मन्नू गर्ग हूँ.... कहा कि - ये तो ललाट है | ये सारा जिससे चलता है वो मैं हूँ | ये नहीं रहने के बाद भी जो रहता है वो मैं हूँ | ये बच्चा था तभी भी मैं था, ये जवान था तब भी मैं हूँ, ये वृद्ध हुआ तब भी मैं हूँ, ये नहीं रहेगा तब भी मैं हूँ, तो कौन हूँ ? उसको जान ले तो ॐकार के मूलस्वरूप में पहुँच जायेगे | परमात्मा का वाचक है ॐकार ये बीज मंत्र है | ऐसे ही एक मंत्र है वो मंत्र अगर किसीको दे दे गुरु और जप करें तो हार्टअटैक कभी न हो सकता है, हाई बी.पी. नहीं हो सकती है अगर जप करें तो, लो बी.पी. नहीं हो सकती, पति-पत्नी के झगड़े नहीं हो सकते है तो शांत हो जायेगा | शनिदेवता का ग्रह नहीं आयेगा है तो जप करो शनिदेवता आशीर्वाद देके चले जायेंगे |   पीलिया हो गया हो २६ लाख रूपये लेते हैं डॉक्टर तो लीवर ठीक | ठीक तो क्या करते हैं कुटुबियों के लीवर काट के थोड़ी २०% फिट करते हैं २६ लाख ले लेते | और उसमे भी कुटुंबी रोता है और जिसने बिठाया बिचारा ...कई बार तो मर भी जाते है | विलासराव देशमुख लीवर के ऑपरेशन में ही चल बसे दुनियाँ से महराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे अपने पास आते थे | ये ॐकार मंत्र ऐसा दूसरा मंत्र है ब्रह्म परमात्मा का जो मंत्र दीक्षा लेता है मैं उसको दे देता हूँ, फिर उसको हार्टअटैक नहीं होगा | तो मेरे साधकों को हार्टअटैक क्यों हो ? शनिदेवता का ग्रह है तो १०० माला मंत्र की जप करें शनिदेवता आशीर्वाद दे के चलें जायेंगे | चाहे साढ़े सात के हो, चाहे १२ साल के | लीवर खराब है तो ५० माला, शनिदेवता का ग्रह है तो १०० माला, पति-पत्नी के झगड़े है १०० माला कुछ दिन जपों | हार्ट कमजोर है, लीवर कमजोर है अथवा हाई बी.पी., लो बी.पी. है ये ठीक हो जाता है ये बीज मंत्र है एक अक्षर के |  मंत्रदीक्षा की महिमा  जिन्होंने मंत्रदीक्षा ली होती है वो ३३ प्रकार के अध्यात्मिक फायदे होते है और १८ प्रकार के मांत्रिक जप की “औरा” के फायदे होते है | और दुसरे संसारी फायदों की लंबी कतारे है | जब विद्यार्थीयों को जो मंत्र देते है सारस्वत्य मंत्र | माँ-बाप ने मंत्र लिया बच्चे को सारस्वत्य मंत्र दिलाया वो पांच  साल का बच्चा कैसा चमत्कारी काम करता है | तो उस सारस्वत्य मंत्र में भी ॐकार है बीजमंत्र है | विद्याशक्ति का दूसरा मंत्र है सरस्वती का बीजमंत्र उनकी व्याख्या करोगे तो कोई विशेष अर्थ पता नहीं चलेगा लेकिन उसका प्रभाव अदभुत होता है | तो बच्चों को वो सारस्वत्य मंत्र देता हूँ | इसलिए बच्चे बड़े चमत्कारी परिणाम ले आते है | बापूजी साथ में बैठे है दिखे नहीं अगर साथ में बैठे तो ये दब जाता हूँ ये बापूजी के गोद में बैठ के चला तो पैर नहीं पहुंचते बापूजी के पैर देखते है नहीं इस स्थूल काया से नहीं होता गुरु शिष्य का सबंध और जीव-ईश्वर का सबंध ये भौतिक नहीं है ये आदिदैविक और आध्यात्म है तो मंत्र से, गुरु से, देवता से सबंध जो जोड़ते है, जैसे सिमकार्ड तो इतना सा दिखेगा लेकिन सेटेलाइट से सबंध जोड़ देता है | कैसे सबंध जोड़ता है आँखे फाड़-फाड़ देखो तो नहीं दिखेगा लेकिन है सबंध ऐसे गुरुदीक्षा के बाद ईश्वर और गुरुतत्व से आदमी की एकता हो जाती है और बड़ी मदद मिलती है |  भगवान शिवजी ने वामदेव गुरु से पार्वती को दीक्षा दिलाई | भगवान रामजी ने सीताजी को भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न को गुरु वशिष्ठ का सत्संग लाभ दिलाया और जब १४ साल बन में गये तभी भी भारद्वाज आश्रम, अत्री आश्रम, अंगीरा आश्रम, अनुसुया आश्रम और ऋषियों के आश्रम में श्रीरामचंद्रजी सत्संग लाभ दिलाते थे लक्ष्मण को सीताजी को | अगस्त ऋषि के आश्रम में भगवान शंकर पार्वती को ले जाते थे | सत्संग की बड़ी भारी महिमा है | युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सत्संग से ही आत्म-परमात्मा की स्मृति जगाई थी | श्रीकृष्ण के दर्शन करता था अर्जुन लेकिन सत्संग के बीना श्रीकृष्ण का आत्मा और मेरा आत्मा की महिमा अद्वितीय है ये साक्षात्कार सत्संग के बिना नहीं हो सकता है | हनुमानजी में अष्टसिद्धि, नौ निधियाँ थी | फिर भी बिना शर्त शरणागति हो गए श्रीरामजी के और रामजी का कृपा प्रसाद मिला तब हनुमानजी को आत्म-साक्षात्कार हुआ | संत की और भगवान की जो परीक्षा लेते है वे रह जाते है | रावण ने परीक्षा लेना चाहा कि अगर रामजी है, भगवान है तो मैं मारीच को भेजता हूँ | नकली मृग है तो रामजी उसके पीछे नहीं दौडंगे अगर मृग को नहीं पहचाने तो रामजी भगवान काय के ? अब भगवान रावण की परीक्षा पेपरों से पास होंगे तभी भगवान होंगे क्या ? संत को किसी के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होती और भगवान को भी किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होती | जो भगवान को और संत को सर्टिफिकेट देने में चक्कर में आते है वो चक्कर खाते रहते है | रामजी जानबूझके अनजाने हुये और मारीच मृग के पीछे दौड़े और भाई लक्ष्मण... लक्ष्मण... ये लीला भी थी रावण को पक्का हो गया कि ये साधारण मनुष्य है और सीताजी को ले गये | और मुसीबत मौल ले ली और अब हर साल दे दिया सलाई.... | तो श्रद्धा के बिना धर्मं की उपलब्धी नहीं होती और विश्वास के बिना सिद्धिशक्ति जागृत नहीं होती | तुलसीदास ने कहाँ कि – श्रद्धा बिना धर्म न होई | बिन विश्वासा को पाई सिद्धि || श्रद्धा की पराकाष्ठा विश्वास है | श्रद्धा माँ पार्वती है तो विश्वास भगवान शिव है | वन्दे पार्वती परमेश्वरों श्रद्धा विश्वास रुपिनों |  लोग बोलते है अंधश्रद्धा - अंधश्रद्धा अरे भाई, श्रद्धा से ही काम चलता है | अंधश्रद्धा ने ही ठेका लिया है क्या अंधा होने का ? अंधश्रद्धा बोलना तो भी अंधश्रद्धा है | तुम्हारा नाम जुनेद मियाँ है तो अपने अब्बा को देखकर मानते हो कि श्रद्धा से मानते हो | तुम्हारा नाम मोहनभाई सोहनभाई है तो बाप को देखा था क्या ? नहीं, ये क्यूँ है ? पृथ्वी गोल क्यूँ है ? जान कर लें | श्रद्धा से सुना, मास्टर ने कहा कि पृथ्वी गोल है | बच्चा लिख के आता है पृथ्वी गोल है ! अंधश्रद्धा से शुरुवात होती है | ये ऐसा ’ क्यूँ है तर्क करने लग जाये, ये ऐसा क्यूँ है ? ऐसा क्यूँ नहीं हुआ ? ऐसा क्यूँ है ? श्रद्धा से मानना पड़ता है | आपने बाप को भी श्रद्धा से माना है | आरे हजामत करने वाले नाई पर भी श्रद्धा रखनी पडती है | उस्तरा यूँ करता है फिर दाढ़ी पर ही घुमायगा | चाय बनानेवाले पर भी श्रद्धा करनी पडती है | हम जब अमेरिका और दुनियाँ के कई देशों में जब जाते थे तब पायलट पे ही श्रद्धा रखते थे | हजारों रुपये की टिकटें लेके अपना सारा साज, सामान और अपनी जान पायलट के हवाले रखते थे तो यहाँ से उठाकर अमेरिका, अमेरिका से उठाकर जर्मन रख देते थे | जो हमारे सामने सिगरेट पीते, चाय पीते, दारु पीते है, सुन्दरियों से मजाक करते ऐसे व्यक्तियों पर हमको श्रद्दा करनी पड़ी | ८४ लाख जन्मों की यात्रा से, ये आत्मा से हटाकर आत्मा-परमात्मा पर पहुंचा दे ऐसे गुरु और शास्रों पर श्रद्धा नहीं करेंगे तो क्या करेंगे ? भगवान कृष्ण कहते है कि –श्रद्धावान लभते ज्ञानं | श्रद्धा करो लेकिन श्रद्धा के साथ सयंम और तत्परता भी हो |श्रद्धावान लभते ज्ञानं | तत्परित्ये सरिते इन्द्रिय ज्ञानं | ज्ञानं लभ्द्वा परमं शांतिरेनावी गच्छति || श्रद्धालु उस आत्म-परमात्मा को ज्ञान को पता है लेकिन खाली श्रद्धालु नहीं तत्पर और इन्द्रिय सयंम हो | नहो तो कभी-कभी श्रद्धालु वही गोल-गोल घूमता रहता है |  महाराष्ट्र में मुंबई है, मुंबई ६०-७० किलोमीटर दूरी पर गणेशपुरी है | वहाँ मुक्तानंद बाबा का आश्रम है | उनके एक ग्रंथ में लिखा है कि नसरुद्दीन अपने अब्बा को बोलता है कि मेरे को मेरा प्यारा गधा दे दो और रुपया दे दो मैं बड़ा आदमी बनने जा रहा हूँ | अब्बा ने बोला बेटे ! थोड़े दिन के बाद मैं बुढ्ढा हो जाऊँगा फिर ये इतनी सारी मस्जिद है तू संभालना | बोले अब्बा ! मै ऐसा क्यूँ सोचु की आप बुढ्ढे हो जाये और कब्रस्तान में चले जाये फिर मैं संभालू मैं तो अभी-अभी कुछ बनना चाहता हूँ | रोज जवान लड़का बोलता है तो अब्बा ने गधा दे दिया, कुछ रूपये दे दिये | नसरुद्दीन यात्रा करते-करते.... जब गरमी तेज पड़ी लूँ चली तो काली हवा लगती है । वो गधा मर गया अब वो लड़का गधे को पकड़-पकड़ के रोये | कल दोपहर को मरा हुआ वो गधा | छोरा वही बैठा है रो रहा है | “अरे जनाब, तेरे बिना मेरी जिन्दगी रह गई खाली..... अरे जनाबे आली | क्या मेरे बोझ से तू थका था......... ऐसा न कर उठ | कभी कभी बैठूँगा ....लेकिन तू उठ के खड़ा हो जा, लेकिन तू खड़ा हो जा...... | उसको चूमे, रोये, लोगों ने देखा कि मरे हुये गधे को चिपक रहा है | बैक्टरिया से हानि हो जायेगी उन्होंने खड्डा खोद के गधे को नमक डालके ऊपर थोड़ी मजार बना दी | कोई छोटा-मोटा नेता होगा उसने चादर चढ़ा दी, किसी ने अगरबत्ती चढ़ा दी, किसी ने फूल रख दिये | अब देख तेरे जनाबे आली का आदर हो रहा है | खाना खाते गया लोग आते गये चले गये बोले ये कौन सी पीर की मजार है पूछते लोग, तो क्या बोले.....? गधा पीर होता, दो पैर वाला होता तो उसको पीर बोलते  -  हैदर अली पीर, फलाना पीर, जुनेद पीर अब इसका तो नाम नहीं गधा पीर तो लोग श्रद्धा नहीं होगी | दो पैर वाले पीर बोलते – “ये चार पैर वाला बड़ा पीर |” गधे की मजार बना दी गाढ़ दिया बड़े पीर पे झण्डा । बड़ी भीड़ लगी | देवी का प्रचार करते करते तुम्हारे बाल सफेद हो गये | लेकिन बड़े पीर का ऐसा प्रचार हुआ की ४ साल में तो हजार परिवार वहाँ रहने लगे, होटल चलने लगे, तकिये बिकने लगे बड़ा पीर .. बड़ा पीर...| नसरुद्दीन के अब्बा ने सोचा कि कम्बख्त चार साल हो गए, कहाँ चला गया | हमारी मस्जिद की आमदनी कम हो गई और बड़े पीर के पास लोग जाते है | मैं भी जाके देखूँ बड़े पीर में क्या करामत है | तो यात्रा करते-करते बड़े पीर के यहाँ आ गये तो देखा बड़ा अंजाम है उसने हथाजोड़ी की कि मुझे बड़े पीर का जो मुखिया है वो मियां साहब से मिलवाओ | जब मियां साहब के कमरे में मिलने गया तो एकदम झटका लगा की अरे ! बोले--- मियां साहब तुमको देखता हूँ तो मुझे अपने कम्बख्त नसरुद्दीन की शकल तुम्हारे में दिखती है | तुम्हारे ही जैसा था हुबहू मानो तुम ही हो नसरुद्दीन | लेकिन आप से कैसे कहूँ आप इतने बड़े पीर के संस्थापक हो गये | नसरुद्दीन हंसा बोले अब्बाजान चकमा खा गए ना, बोले तो मैं वही नसरुद्दीन हूँ | बोले - कम्बख्त ये सब क्या है ? बोले - गधा मर गया था मैं रो रहा था लोगों ने गाढ़ दिया, मजार बन गई मस्जिद  बन गई वाह वाह !! आल्लाताला की रहमत है | “ आल्लाताला की रहमत नहीं लोगों की श्रद्धा का दुरूपयोग है | जय रामजी की .... भगवान कहते है कि तत्पर भी हो और इन्द्रिय सयंम भी हो | यस्य ज्ञानं भयं तपा | बुद्धि योग उपषितमस्चित सततं भव || केवल मूर्तिपूजा में समाज रुका न रहे उनको सत्संग भी मिले और इसी जीवन में दुःख–सुख के सिर पर पैर रखे परमात्मा को पा लें ऐसा सत्संग कराने का सौभाग्य है | पीर तो कई लोग बनाते है कितना भी बड़ा पीर हो खोदो तो हड्डियाँ मिलेगी | तो श्रद्धालुओं को श्रद्धा का फल मिलता है लेकिन अंदर देखो तो बाहर चक्की-मक्की अंदर बुरबुर दख्खि | तो श्रद्धा के साथ तत्परता और सत्संग भी | जिसके जीवन में सत्संग नहीं है वो चाहे बड़ा राजा हो, वो सम्राट हो विश्वास की गाथाएँ गाते थकता न हो लेकिन वो अभागा जरुर है |  राजा नृग की कथा  राजा नृग बड़ा राजा था मरने के बाद किरकिट हो गया | श्रीकृष्ण वन दिवस मनाते थे | भोजन करके सब टहलने गये । उद्धव ने देखा कि एक सूखे कुए में किरकिट पड़ा है | बलराम को बुलाया, सब लोगों ने प्रयत्न किया लेकिन अभागा किरकिट निकल नहीं पाता | श्रीकृष्ण को बुलाने गये श्रीकृष्ण ने उस किरकिट को निकलवाया | और अपनी कृपा दृष्टि डाली किरकिट की गर्दन लुढ़क गई उसका जीव देवता के रूप में प्रगट हो गया | सबको जाननेवाले श्रीकृष्ण अनजान होकर पूछते हैं कि “ हे देवपुरुष, हम बालगोपाल को दर्शन देने के लिए आप कहाँ से पधारे ?”  तब वो देवपुरुष बोलता है कि “ हे माधव ! आप सब जानते है मैं वो अभागा राजा था जिसका यशगान अभी भी इतिहास कर रहा है | अभी भी ब्राम्हण लोग चर्चा में मेरे नाम का दृष्टांत देते है | आसमान को तारें कोई गिन सकता है लेकिन मैंने अपने यश  के लिए  कितने गौवे दान की ये नहीं गिन सकता |”   “अच्छा तो तू राजा नृग है ?”  बोले ।   “हाँ महाराज ! मैं ही वो अभागा राजा नृग हूँ | मैंने यश के लिए गौवे दान की, लेकिन सत्संग नहीं मिलने के कारण मरने के बाद मैं किरकिट हो गया | अभी भी नृग राजा का यश गया जा रहा है लेकिन मेरे को क्या फायदा | मरनेवाले शरीर का यश हुआ तो क्या हुआ ? अमर आत्मा का सत्संग देनेवाला सद्गुरु का आयोजन मैं नहीं करवा पाया |”  सितारों से आगे जहाँ कुछ और भी है इश्क के इम्तिहान कुछ और भी हैं ।  तुम्हारी अपनी दुनिया बहुत छोटी है | ऐसी कई सृष्टियाँ है, कई ब्रह्मांड है, कई कोटि पाताल, कई वाशी, कई कोटि जतिंदर | ये एक सूरज है जो पृथ्वी से १३ लाख गुना बड़ा है तो भी अपने को थाल जितना दीखता है | तो तेहरवा लाख हिस्सा पृथ्वी, सूरज के यहाँ खड़े हो के देखो तो एक बिंदु जैसा हो जाएगा | उसमे २०० राष्ट्र- उसमे से एक भारत, भारत में भी एक मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश में भी देवास और उसमे में भी मेरा घर, मेरा मकान, मेरी सडक | ये सब मेरा मेरा करके चलें जायेगें उससे पहले ...... “मैं“ उठता है जिस परमात्मा में, उसमें आराम मिल जाये तो, उस परमात्मा का ज्ञान मिल जाये, उस परमात्मा की प्रीति मिल जाय ये सत्संग का सामर्थ्य है | तुलसीदासजी कहते है – तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिये तुला एक अंग तुली ने पहुँचे सकल मिले जो सुख लव संग | स्वर्ग का सुख चाहे अपवर्ग हो या ब्रह्मलोक का सुख सब सत्संग की बराबरी नहीं कर सकता है |  एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध  तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध |  सुख देवे दुःख को हरे करे पाप का अंत  कह कबीर वे कब मिले परम स्नेही संत |  जिसका परमात्म स्नेह हो ऐसे संत का सत्संग कब मिले | नेता बोलता है तो भाषण हो जाता है, प्रोफेसर बोलता है तो लेक्चर हो जाता है, कथाकार बोलता है कथा कही जाती है लेकिन संत बोलता है तो सत्संग हो जाता है क्योंकि सत्यस्वरूप ईश्वर में भी विश्रांति मिलती है | ये ॐकार मंत्र जपने से सत्यस्वरूप ईश्वर के साथ एकात्मकता जल्दी हो जाती है |  रात्रि को सोते समय पूर्व के तरफ अथवा दक्षिण के तरफ सिरहाना होना चाहिए  | अगर पश्चिम के तरफ सिरहाना करके सोते हो तो चिंता तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी | उत्तर के तरफ सिरहाना है तो बीमारी पीछा नहीं छोड़ेगी | सोने के पहले ये सोच लो कि आज का दिन जो कुछ अच्छा हुआ है तेरी कृपा से हुआ है | कई गलती हुई तो मेरी नादानी है | मेरी नादानी तू बक्श दे, तेरी प्रीति और तेरी प्रेरणा से मुझे ज्ञान दे प्रभु ! हरि ॐ ॐ ॐ ॐ ..... प्रभुजी ॐ , मेरेजी ॐ .. आनंद ॐ ॐ , माधुर्य ॐ ॐ...  ॐ... ॐ... ॐ.. ॐ.. ये ‘ॐकार’ मंत्र है बीजमंत्र है | उच्चारण करते जाओ । नाम जपत मंगल दश दिशा ... रात को सोते समय, दिन में बीच बीच में भगवन नाम का गुंजन हो | मानसिक तनाव, शारीरिक तनाव की ऐसी-तैसी, बौद्धिक तनाव गायब और जीवन रसमय कर देता है | ये ॐकार प्रभु का गुंजन ॐ ॐ ओमम्म्म्मम्म्म्म .... हा ...हा... हा.... ( देव-मानव हास्य प्रयोग) जिनके घर में झगड़े होते हो पानी का लोटा भर के, घर का मुखिया अपने पलंग के नीचे रख दे | सुबह तुलसी में, बड में, पीपल में अथवा किसी का पैर न पड़े ऐसी जगह में डाल दे | खरा नमक का पोछा कर लें घर में हफ्ते में एक बार । नकारात्मक विचार चलें जायेंगे, कलह चला जाएगा | रसोईघर में बैठ के, कीर्तन करके, मिलकर भोजन करें घर के झगड़े भक्ति में बदल जायेंगे | बीमारी तंदुरस्ती में बदल जायेगी | काटों को फूलों में बदलने की कला सीख लो, हार में जीत में बदलने की कला सीख लो, बैर को प्रीत में बदलने की कला सीख लो | अगर सद्गुरु की दीक्षा मिल जाय तो मौत को मोक्ष में बदलने की कला सिखाता है | थोडा कीर्तन उच्चारण करते-करते रात को सो जाय तो पूर्व अथवा तो दक्षिण के तरफ सिरहाना हो | ह्रदयपर हाथ रखके ॐ शांति ... ॐ प्रभुजी .... ये पंचभौतिक शरीर माया का माया में पड़ा है मन, बुद्धि, अहंकार माया लेकिन मैं तो आत्मा हूँ वो परमात्मा का है | जैसे घड़े का आकाश महाआकाश होता है, तरंग पानी की पानी तरंग की है ऐसे ही जीवात्मा  प्रभु परमात्मा का है | आप मेरे हो आप मेरे अंतरात्मा हो | सब बदल गया लेकिन आप जो का त्यों है | मैं आप ही में विश्रांति पाता हूँ | ॐ शांति , ॐ आनंद ... ॐ प्रभुजी ॐ मेरेजी आनंद आनंद लगेगा | और नींद ऐसी बढ़िया आएगी और सुबह उठोगे तो चिंता में सोते हो तो चिंता से उठते है, बीमारी में सोते हो तो बीमारी से उठते है, शरीर में सोते तो शरीर से उठते है लेकिन ॐ ॐ ॐ ॐ ईश्वर में जो सोते है वो ईश्वर से जागते है | ईश्वर के उस मंगल स्वभाव में से सुबह जो उठो तो आनंद  ॐ ॐ ॐ ..... हरि ॐ ॐ ॐ              Share Recommended section शुभ कर्मों का फल प्राप्त करने से रोक सकती है “बिन्दी” प्राचीन रानियां खूबसूरती निखारने के लिए प्रयोग करती थीं ये एक चीज नाखून पर बना यह निशान ‘जल्द आने वाली मृत्यु’ का संकेत है छोटी अंगुली में पहनें चांदी का छल्ला, दिखेगा चमत्कार जानिये कैसा है आपका दिमाग Popular section पेट होगा अंदर, कमर होगी छरहरी अगर अपनायेंगे ये सिंपल नुस्खे एक ऋषि की रहस्यमय कहानी जिसने किसी स्त्री को नहीं देखा, किंतु जब देखा तो... किन्नरों की शव यात्रा के बारे मे जानकर हैरान हो जायेंगे आप कामशास्त्र के अनुसार अगर आपकी पत्नी में हैं ये 11 लक्षण तो आप वाकई सौभाग्यशाली हैं ये चार राशियां होती हैं सबसे ताकतवर, बचके रहना चाहिए इनसे Go to hindi.speakingtree.in

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