शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

भक्ति की महिमा

satsang ganga rkdeo LIVE AND LET OTHERS LIVE IN PEACE..!! Sunday, May 1, 2011 भक्ति की महिमा...! ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः...! *** भक्ति की महिमा...! रामचरितमानस में ग्स्वमी तुलसीदासजी कहते है.. भगतिहि सानुकूल रघुराया..ताते तेहि डरपति अति माया..१ राम भगति निरुपम निरुपधि..नसाहि जासु उर सदा अवाधी..! तेहि विलोकी माया सकुचाही..करि न सकही कछु निज प्रभुताई..! अस विचरि जे मुनि विज्ञानी..जाचहि भगति सकल गुन खानी..! यह रहस्य रघुनाथ का बेगी न जानहि कोई..! जो जानहि रागुपति कृपा सपनेहु मोह न होइ..!! औरहु ज्ञान भगति कर भेद सुनाहु सुप्रवीन..! जो सुनी होइ राम पद प्रीति सदा अविछिन..!! सुनाहु टाट यह अकथ कहानी..समुझत बनाई न जाट बखानी..! इस्वर अंस जीव अविनासी..चेतन अमल सहज सुखरासी..! सो माया बस भयहु गोसाई..बंध्यो कित मरकत की नाइ..! जड़ चेतनहि ग्रंथि पारी गई..जदपि मृषा छुटट कठिनई..! तब ते जीव भयहु संसारी..छुट न ग्रंथि न होइ सुखारी..! श्रुति पूरण बहु कहेउ उपाई..छुट न अधिक अधिक अरुझाई..! जीव ह्रदय तम मोह विसेषी..ग्रंथि छुट किम पराई न देखी..! अस संजोग इस जब कराइ..तबहू कदाचित होऊ निबरई. ..! सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई..जो हरि कृपा ह्रदय बस आई..! जप ताप व्रत जम नियम अपारा..जे श्रुति कह धर्म आचार..! तेई तरीन हरित चारे जब गई..भाव बच्छ सिसु पाई पेन्हाई..! मोह निवृत्त पात्र बिस्वासा..निर्मल मन अहीर निज दासा..! परम धर्म माय पय दुही भाई..अवते अनल अकाम बनाई..! तोष भगत तब छमा जुदावाई..घृति सम जत्रानु देई जमावै..! मुदितौ माथे विचरि मथानी..दम आधार राजू सत्य सुबानी..! तब माथि काढि लेई नवनीता.विमल विराग सुभग सुपुनीता..! जोग अगिनी तब जारी करि प्रगट तब कर्म सुव्हासुभ लाइ..! बुद्धि निरवै ज्ञान घृत ..ममता मल ज़री जाई..! तब विज्ञान रूपिणी बुद्धि..विसद घृत पाई..! चित्त दिया धरी धरे दृढ ममता दिवटी बनाई..! तीनी अवस्था तीनी गुन तेहि कपास ते काढि..! टूल तुरीय संवारि पुनि बाती करे सुधारि..!! एही बिधि लेन्से दीप तेज रासी विज्ञान माय..!जारही जासु समीप जारही मदाधिप सालभ सब..!! सोहमस्मि इति वृत्ति अखंडा ..दीप सिखा सोई परम प्रचंडा ..! अतम अनुभव सुख सुप्रकासा..तव भव मूल भेद भ्रम नासा..! प्रवाल अविद्य कर परिवारा..मोल आदि तम मिटहि अपरार..! तब सोई बुद्धि पाई उजियारा..उर गरी बैठि ग्रंथि निरुआरा..! छोरम ग्रंथि पाँव जो सोई..तब यह जीव कृतारथ होइ..! रिद्धि सिद्धि प्रेराहू बहु भाई..बुद्धिही लोभ दिखावहि आई..! कल बल छल करि जाहि समीपा..अंचल बात बुझावहि दीपा..! होइ बुद्धि जो परम सायानी..तिन्ह तन चितवन अनहित जानी..! जो तेहि विघ्न बुद्धि नहीं बाधी..तौ बहोरि सुर करहि उपाधी..! इंडी द्वार झरोखा नाना..जंह तंह सुर बैठे करि धना..! अआवत देखही विषय वयारी..तब पुनि देहि कपाट उघारी..! जब सो प्रभंजन उर गृह जाई..तबाही दीप विज्ञान बुझाई..! ग्रंथि न छूती मिटा सो प्रकासा..बुद्धि विकल भाई विषय बतासा..! इन्द्रंह सुरन्ह न ज्ञान सोहाई..विषय भोग पार प्रीति सदाई..! विषय समीर वुद्धि कृत भोरी..तेहि बिधि दीप की धर बहोरी..! तब फिरि जीव बिबिध बिधि पावही संसृति कलेस..! हरि माया अति दुस्तर तरि न जाय बिहगेस..!! कहत कठिन समुझत कठिन साधत कठिन विवेक..! होइ घुनाच्छर न्याय जो पुनि प्रत्यूह अनेक..!! ***** इस प्रकार संत-शिरोमणि तुलसीदासजी ने भक्ति ज्ञान साधना और आत्म-अनुभव के बारे में उपरोक्त चौपाइयो में बहुत ही सटीक-सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला है..! आज के समय में आत्म-कल्याण चाहने वाले जिज्ञासुओ के लिए इन चौपाइयो में कही गयी बातो का अति महत्त्व है..लेकिन बिना सत्संग और समर्पण किये इनका मर्म पूरी तरह समझ में नहीं आ सकता है..! गीता में जो ज्ञान भगवन श्रीकृष्णजी ने अर्जुन को कृक्षेत्र के मैदान में दिया था..क्रमोवेश यहि ज्ञान आत्म-अनुभव है..! जिसने अपने पिंड में समायी हुई आत्मा का अनुभव कर लिया..उसको परमात्मा से मिलने से कोई शक्ति रोक नहीं सकती है..! जब तक जीवात्मा इस पिंग में बंधी हुयी है..अर्थात इसमे ग्रंथि पड़ी हुई है..तब तक विशुद्ध-निर्मल-शाश्वत-चिन्मय आत्मा-तत्व का अनुभव कदापि नहीं हो सकता है..! समत के तत्वदर्शी गुरु की कृपा से ही यह ग्रंथि छूटती या खुलती है..और द्वेत से अद्वेत की ओर जाने का मारी सुलभ हो जाता है..! जब तक जीव द्वेतावस्था में रहता है..तब तक अद्वेत-परमत्मा से उसका मिलन असंभव है..! इसी अद्वेत की स्थिति को प्राप्त करने के लिए यह मानव-जीवन एक अवसर के रूप में मिला है..! वह मानव-जीवन धन्य है..जो इसको प्राप्त कर चूका है..और वह जिज्ञासु धन्य है जो इसको प्राप्त करने में संलग्न है..! ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!! rkpandey at 1:23 AM Share No comments: Post a Comment ‹ › Home View web version About Me rkpandey I M A SIMPLE MAN DEDICATED TO THE CAUSE OF HUMAN N MORAL VALUES.. mY MOTTO IS SIMPLE LIVING N HIGH THINKING. I BELIEVE IN UNIVERSAL BROTHERHOOD..AND SPIRITUAL UPLIFTMENT.. चार्ल्स डार्विन ने विकास वाद का सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए कहा ... "origin of species by natural selection and survival of the fittest..!!" ..अर्थात प्राकृतिक चयन के द्वारा योग्यतम ही अस्तित्व में आते है..बाकी सब नष्ट हो जाते है..! ..यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है..! भौतिक-जगत में आज इतनी प्रतिस्पर्धा है..कि..बहुत सारे लोग दौड़ में पीछे छूटते जा रहे है..और हताशा कि स्थिति में काल-लावालित भी हो रहे है..!! ..आध्यात्मिक जगत में भी..ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात साधक अपने मन-इन्द्रियों को वश में नहीं कर पाते और भटक जाते है..! ..जब प्रकृति अपने प्रभाव से ऐसी स्थिति ला देती है..कि जीव का कल्याण हो जाय..तब परिवेश बदल जाता है..और जीव स्थित-प्रज्ञा होकर इस लोक में रहते हुए आनंद-भोग करता है..! View my complete profile Powered by Blogger.

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